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    अमृत-2 प्रोजेक्ट:दीनदयाल सर्किल से एसबीआई तक ट्रेंचलेस विधि से बनाना था सीवर, पूरी सड़क खोद दी

    1 month ago

    अमृत-2 प्रोजेक्ट के तहत शहर भर में सीवरेज डालने वाली टेक्नोक्राफ्ट प्राइवेट लिमिटेड फर्म जब बीकानेर में आई तो उससे पहले तर्क दिए गए कि ट्रेंचलेस तकनीक से सीवरेज डाली जाएगी। ट्रेंच लेस का अर्थ है इसमें नगर जैसी लंबी खुदाई नहीं करनी होगी। सिर्फ गडढें खोदे जाएंगे और अंदर ही अंदर सीवरेज लाइन डाली जाएगी और पुरानी की मरम्मत कर दी जाएगी। इसके विपरीत फर्म ने दीनदयाल सर्किल से रजिस्ट्रार आफिस तक 800 मीटर की सड़क में ट्रेंच लेस तकनीक का जनाजा ही निकाल डाला। खुदाई करके पहले से बनी सड़क को पूरी तरह दफन कर डाला है। 6 महीने हो गए 800 मीटर सड़क में सीवरेज नहीं डाल पाई फर्म। दरअसल दो साल पहले सीवरेज का काम अमृत-2 परियोजना के तहत शुरू हुआ। ट्रेंच लेस तकनीक समझकर लोगों ने सोचा कि सड़कें खुदाई से बच जाएंगी क्योंकि कहा था कि गड्‌ढे खोदकर सही करेंगे। मगर जब काम शुरू हुआ तो हर 500 मीटर में एक गडढा खोद दिया। उसके बाद लोगों ने ट्रेंच लेस तकनीकी पर सवाल उठाने शुरू कर दिए कि 500 मीटर में दो-दो गडढें वो भी इतने बड़े कि 20 से 30 वर्गफीट की सड़क की ऐसी-तैसी कर डाली। इससे अच्छा होता कि जेसीबी से पाइप लाइन की साइज में खुदाई करके ही सीवरेज डाल देते। ट्रेंच लेस तकनीक का सबसे बड़ा मजाक दीनदयाल सर्किल से रजिस्ट्रार आफिस तक उड़ रहा है। 800 मीटर में दाे जगह गड्‌ढे खोकर काम चलाया जा सकता था क्योंकि हर 500 मीटर में एक गड्‌ढा खोदने की जरूरत है मगर इस ट्रेंच लेस तकनीकी एक तरफ की पूरी सड़क ही गायब कर दी। दीवाली सिर पर, रोड पर होली जैसी धूल करणीनगर इलाका शहर के पॉश इलाकों में शामिल है। दीवाली पर लोग घर से लेकर दफ्तरों की सफाई करा रहे हैं मगर इस इलाके में होली जैसा माहौल है। इस सड़क के कारण आसपास के घरों से लेकर वेटरनरी विवि तक धूल ही धूल छाई है। अभी भी 800 मीटर में से 50 मीटर सड़क में सीवरेज डालनी बाकी है। चैंबर का काम भी हो रहा है। उसके बाद फर्म सड़क का लेवल करेगी। मिट्टी से दबाएगी। निगम अभियंताओं की जिम्मेवारी है कि सड़क का लेवल करते वक्त चैक करें वरना पेचवर्क की तरह ही ये सड़क भी एक ही दिन में दुरुस्त कर दी जाएगी। भास्कर एक्सपर्ट- -नरेश जोशी, रिटायर्ड एक्सईएन पीडब्ल्यूडी हर 50 मीटर में खोदा फिर तो जेसीबी ही ठीक थी ट्रेंच लेस तकनीकी से ये हर 50 मीटर में कम से कम 15 फीट लंबा और इतना ही चौड़ा गडढ़ा खोदते हैं। जब एक गडढ़ा खोदते हैं तो आसपास की कुछ और भी सड़क टूटती ही टूटती है। पैचवर्क के टाइम ये फर्म उतना ही गड्‌ढा ठीक करती है जितनी खोदी। टूटी हुई सड़क छोड़ देती है। इस कारण लाइबिलिटी पीरियड वाली सड़कों के ठेकेदार भी इसे ठीक नहीं करते। ट्रेंच लेस तब साबित होता जब ड्रिल की तरह खुदाई होती जिससे आमजनों को दिक्कत ना होती और ना सड़क का नुकसान होता। ये खुदाई तो जेसीबी से हो रही है। आसपास की सड़क टूट रही। दीनदयाल सर्किल वाली रोड मैने भी देखी। मुझे उसमें ट्रेंच तो कहीं नजर नहीं आया। ऐसे लगा रहा मानो कोई कच्चा रास्ता था ये। पहले सड़क थी इसकी फील ही नहीं आ रही इतनी बुरी तरह से खत्म की गई। इसके चक्कर में दूसरी साइड की सड़क और खराब हो गई। "ट्रेंच लेस और पिटलेस में फर्क होता है। आप शायद पिटलेस की उम्मीद कर रहे हैं। पिटलेस में गड्‌ढे नहीं खोदे जाते मगर बिना पिट किए सीवरेज नहीं डाली जा सकती। पर इससे भी सहमत हूं कि ट्रेंचलेस के तहत जितनी सहजता से काम होना चाहिए वो इस रोड पर कम दिख रहा है। मैं दीवाली तक इस सड़क को मूल स्वरूप में लाकर सही कराने के प्रयास में हूं।" -चिराग गोयल, एक्सईएन, नगर निगम
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