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भारतीय क्रिकेटर युवराज सिंह के पिता योगराज सिंह का एक वीडियो सामने आया है। इसमें वे खालिस्तान समर्थक जरनैल सिंह भिंडरांवाले को संत बता रहे हैं। वीडियो में वह कह रहे हैं कि शस्त्र विद्या सीखें और अपने पास शस्त्र रखें, क्योंकि आगे कठिन समय आने वाला है। उन्होंने लोगों से यह भी अपील की कि वे गुरबाणी का पाठ करना शुरू करें। इसी को काम आना है। इंस्टाग्राम पर शेयर यह वीडियो श्री हजूर साहिब नांदेड़, महाराष्ट्र का बताया गया है। इसमें योगराज सिंह संगत को संबोधित करते दिखाई दे रहे है। इसके बाद संगत की ओर से उनको पटका पहनाकर सम्मानित किया जाता है। दैनिक भास्कर इस वीडियो की पुष्टि नहीं करता। 3 पॉइंट में जाने क्या कहा योगराज सिंह ने... 1. मेरी इतनी औकात नहीं है कि मैं कुछ बोलूं: इतने बड़े महापुरुष खड़े हैं। मुझे इनमें गुरु गोबिंद सिंह दिखते हैं। हालांकि मैं एक बात जरूर कहूंगा, अगर वह अनुमति देंगे तो। मैं माताओं और बेटियों से एक बात कहना चाहता हूं कि सच्चे पातशाह गुरु गोबिंद सिंह से शहीद सिंह कहते हैं कि हम भी पंथ की सेवा करना चाहते हैं। तो महाराज कहते हैं कि मैं वह गर्भ कहां से लेकर आऊं, जहां से तुम्हें जन्म दूं। माफ करना अगर मैंने कुछ गलत कहा हो। 2. सिखी के साथ जुड़कर आने वाले वक्त को संभालो: गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के बोल शस्त्र विद्या, बाणी विद्या। अपनी बेटियों और माताओं, आपके गर्भ से पैदा होने वाले जरनैल नहीं मिलेंगे। आपको हाथ जोड़कर बिनती है। मेरी ड्यूटी लगी है, मैं गुरु घर का एक डाकिया हूं। अपना आप संभालो और सिखी के साथ जुड़कर आने वाले वक्त को संभालो। 3. बाणी पढ़ो, यही काम आनी है: मैं एक छोटी सी बात करना चाहता हूं। संत जरनैल सिंह भिंडरांवाले के पास एक परिवार आया था। उन्होंने एक बात कही थी। वह कहते हैं, मालिक, क्या आदेश है? संत जी ने कहा- यह बताओ कि आपके पास शस्त्र हैं? इस पर वह कहते हैं- “महाराज, शस्त्र तो हमारे पास कोई नहीं। हम घर में सात लोग हैं। घर में हमारी तीन माताएं हैं, बहनें और हमारे बुजुर्ग हैं और मैं हूं। वह कहते हैं कि समय बहुत भयानक है। शस्त्र अपने पास रखो। शस्त्र, बाणी, विद्या अपने बच्चों को दो। उन्होंने लोगों से अपील की है कि बाणी पढ़ो, यही काम आनी है। कौन था जरनैल सिंह भिंडरांवाले खालिस्तान समर्थक जरनैल सिंह भिंडरांवाले सिखों की धार्मिक संस्था दमदमी टकसाल का लीडर था। उसकी कट्टर विचारधारा के साथ सिख व पंजाब के लोग जुड़ना शुरू हो गए थे। भिंडरांवाले ने गोल्डन टेंपल परिसर में बने श्री अकाल तख्त को अपना मुख्यालय बना लिया। भिंडरांवाले को 41 साल पहले ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाकर सेना ने मारा गया था, पढ़िए पूरी कहानी 1984 के अप्रैल महीने के आखिरी दिन। जगह- अमृतसर का स्वर्ण मंदिर। कंस्ट्रक्शन का सामान लिए कई ट्रक एक के बाद एक मंदिर के अंदर जा रहे थे। सफेद सलवार-कुर्ता पहने आम कद-काठी का एक आदमी इसकी देखरेख कर रहा था। नाम था- शाहबेग सिंह। वही शाहबेग, जो कभी भारतीय सेना में मेजर जनरल रहा था। ये सेना का तीसरा सबसे बड़ा ओहदा होता है। शाहबेग अलग खालिस्तान की मांग कर रहे सिख उग्रवादियों के सबसे बड़े नेता जरनैल सिंह भिंडरांवाले का मिलिट्री एडवाइजर था। अंदर मौजूद भिंडरांवाले के कहने पर शाहबेग ने मंदिर के कैंपस में भारी मात्रा में हथियार और लड़ाके जमा करके एक किले की तरह मोर्चेबंदी कर ली थी। भिंडरांवाले की मर्जी के बिना सेना तो दूर की बात, कोई आम श्रद्धालु भी अंदर नहीं घुस सकता था। इंदिरा सरकार ने कई बार बातचीत के जरिए मंदिर खाली कराने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। 11 मई को समझौते की एक आखिरी कोशिश हुई, लेकिन भिंडरांवाले ने उसे भी ठुकरा दिया। आखिरकार भिंडरांवाले को कुचलने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार लॉन्च किया गया, जिसमें उसकी मौत हो गई। जिंदगी के आखिरी दिन भिंडरांवाले क्या कर रहा था, उसके जान बचाकर पाकिस्तान चले जाने की कहानी में कितना सच है, जानेंगे भास्कर एक्सप्लेनर में… सेना का फैसला- 'अकाल तख्त में ही भिंडरांवाले को मारेंगे' दिसंबर 1983 में भिंडरांवाले ने स्वर्ण मंदिर के बगल में बने गुरु नानक निवास को छोड़कर अकाल तख्त में ठिकाना बना लिया था। स्वर्ण मंदिर के मुख्य भवन के सामने 100 मीटर की दूरी पर अकाल तख्त है। सिख धर्म में अकाल तख्त का खास दर्जा है। महाराजा रणजीत सिंह के समय से ही सिख धर्म के सारे फैसले यहीं से लिए जाते रहे हैं। जब बातचीत से कोई नतीजा नहीं निकला तो 30 मई 1984 की रात सेना अमृतसर और पंजाब के बाकी शहरों में दाखिल हुई। स्वर्ण मंदिर के आसपास की इमारतों पर CRPF और BSF के जवान तैनात हो गए। भिंडरांवाले को कुचलने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार लॉन्च हो चुका था। 1 जून की रात 9 बजे अमृतसर में कर्फ्यू लगा दिया गया। अगले 24 घंटों में करीब 70,000 फौजी पूरे पंजाब में फैल चुके थे। 2 जून की शाम को देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का दूरदर्शन पर राष्ट्र के नाम संदेश आया। इंदिरा बोलीं, 'केंद्र सरकार राज्य (पंजाब) में फैल रहे आतंकवाद और हिंसा का अंत कर देगी।' 4 जून की सुबह करीब 4-5 बजे सेना और भिंडरांवाले के लोगों के बीच गोलाबारी शुरू हो गई। अगले दो दिनों में कई जवान शहीद हुए। हालांकि अब तक भिंडरांवाले तक नहीं पहुंचा जा सका था। आखिरकार सेना ने फैसला किया कि उसे अकाल तख्त में ही घुसकर मारा जाएगा। ये फैसला बड़ा था, क्योंकि अकाल तख्त को नुकसान पहुंचता तो सिख और भड़क सकते थे। इस बीच फायरिंग में सेना के कई जवान और अंदर मौजूद आतंकी मारे जा रहे थे। अंदर से लाशें ट्रकों में भरकर चाटीविंड के मुर्दाघर ले जाई जा रही थीं। 6 जून को भिंडरांवाले ने आखिरी अरदास की भिंडरांवाले के आखिरी क्षणों का जिक्र दो जगह पर मिलता है। अकाल तख्त के तब के जत्थेदार किरपाल सिंह ने अपनी किताब 'आई विटनेस अकाउंट ऑफ ऑपरेशन ब्लूस्टार' में अकाल तख्त के प्रमुख ग्रंथी ज्ञानी प्रीतम सिंह से बातचीत का ब्योरा देते हुए लिखा है, 'मैं तीन सेवादारों के साथ अकाल तख्त के उत्तरी कोने पर बैठा हुआ था। 6 जून की सुबह करीब 8 बजे फायरिंग थोड़ी कम हुई तो मैंने भिंडरांवाले को शौचालय की तरफ से अपने कमरे के पास आते देखा। उन्होंने नल में अपने हाथ धोए और वापस अकाल तख्त की तरफ लौट गए।' भिंडरांवाले के साथ परछाई की तरह दो लोग रहते थे- अमरीक सिंह और शाहबेग सिंह। अमरीक सिंह ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन (AISSF) का प्रेसिडेंट था। वहीं शाहबेग सिंह पर 1976 में आर्मी से रिटायर होने से ठीक पहले करप्शन के आरोप लगे थे। इस बेइज्जती का बदला लेने के लिए शाहबेग, भिंडरांवाले के साथ आ मिले थे। किरपाल लिखते हैं, 'करीब साढ़े आठ बजे भाई अमरीक सिंह ने कहा कि हम लोग निकल जाएं। जब हमने उनसे उनकी योजना के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि संत (भिंडरांवाले) तहखाने में हैं। पहले उन्होंने सात बजे शहीद होना तय किया था, लेकिन फिर उन्होंने उसे साढ़े नौ बजे तक स्थगित कर दिया था।' एक और किताब 'द गैलेंट डिफेंडर' में ए आर दरशी लिखते हैं, 'मैं 30 लोगों के साथ कोठा साहब में छिपा हुआ था। 6 जून को करीब साढ़े सात बजे भाई अमरीक सिंह वहां आए और हमसे कहा कि हम कोठा साहब छोड़ दें, क्योंकि अब सेना के लाए गए टैंकों का मुकाबला नहीं किया जा सकता।' दरअसल, अकाल तख्त तक पहुंचने के लिए सेना ने तख्त की दीवार पर विजयंत टैंकों से गोले दागने शुरू कर दिए थे। दरशी के मुताबिक कुछ मिनटों बाद संत भिंडरांवाले अपने 40 समर्थकों के साथ कमरे में दाखिल हुए। उन्होंने गुरुग्रंथ साहिब के सामने बैठ कर प्रार्थना की और अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा जो लोग शहादत लेना चाहते हैं, मेरे साथ रुक सकते हैं। बाकी लोग अकाल तख्त छोड़ दें। जांघ में लगी पहली गोली, भिंडरांवाले को मरते किसी ने नहीं देखा अकाल तख्त के बाहर कारतूसों के खोखे की एक इंच मोटी परत बन गई थी। बरामदे के आसपास का स्ट्रक्चर तहस-नहस हो चुका था। जब भिंडरांवाले मलबे पर पैर रखते हुए अकाल तख्त के सामने की तरफ गया तो उसके पीछे उसके 30 साथी भी थे। जैसे ही वो आंगन में निकला, उसका सामना गोलियों से हुआ। अकाल तख्त में मौजूद भिंडरांवाले ने अपनी मौत से पहले तीन पत्रकारों से बात की थी। उनमें से एक थे- बीबीसी के मार्क टली। दूसरे थे- टाइम्स ऑफ इंडिया के सुभाष किरपेकर और तीसरे मशहूर फोटोग्राफर रघु राय। मार्क टली और सतीश जैकब अपनी किताब 'अमृतसर मिसेज गांधीज लास्ट बैटल' में लिखते हैं, 'बाहर निकलते ही अमरीक सिंह को गोली लगी, लेकिन कुछ लोग आगे दौड़ते ही चले गए। फिर गोलियों की एक और बौछार आई, जिसमें भिंडरांवाले के 12- 13 साथी धराशायी हो गए।' 'अचानक कुछ लोगों ने अंदर आकर कहा कि अमरीक सिंह शहीद हो गए हैं। जब उनसे भिंडरांवाले के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उन्होंने उन्हें मरते हुए नहीं देखा है।' मार्क टली लिखते हैं, 'राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के सलाहकार रहे त्रिलोचन सिंह को अकाल तख्त के एक ग्रंथी ने बताया था कि जब भिंडरांवाले बाहर आए थे तो उनकी जांघ में गोली लगी थी। उनको दोबारा भवन के अंदर ले जाया गया, लेकिन किसी ने भी भिंडरांवाले को अपनी आंखों के सामने मरते हुए नहीं देखा।' भिंडरांवाले के ज्यादातर साथी मारे जा चुके थे। सेना ने ग्रेनेड का इस्तेमाल किया, ताकि रास्ता बनाकर भिंडरांवाले तक पहुंचा जा सके। 6 जून को शाम चार बजे से लाउडस्पीकर से लगातार घोषणा की जा रही थी कि जो लोग अभी भी कमरों या तहखानों में हैं, बाहर आकर सरेंडर कर सकते हैं। तब तक भिंडरांवाले का कोई पता नहीं था। पकड़ा गया आतंकी सैनिकों को भिंडरांवाले के शव के पास ले गया ऑपरेशन ब्लूस्टार के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बरार अपनी किताब 'ऑपरेशन ब्लूस्टार द ट्रू स्टोरी' में लिखते हैं, 'जब 26 मद्रास रेजिमेंट के जवान अकाल तख्त में घुसे तो दो लोग भागने की कोशिश कर रहे थे। उन पर गोली चलाई गई। इनमें से एक तो मारा गया, लेकिन दूसरा पकड़ लिया गया। उससे पूछताछ की गई तो उसने सबसे पहले बताया कि भिंडरांवाले अब इस दुनिया में नहीं हैं। फिर वो हमारे सैनिकों को उस जगह ले गया जहां भिंडरांवाले और उसके 40 लोगों की लाशें पड़ी हुई थीं।' बुलबुल बरार के मुताबिक, 'थोड़ी देर बाद हमें तहखाने में शाहबेग सिंह की भी लाश मिली। उनके हाथ में अभी भी उनकी कार्बाइन थी और उनके शरीर के बगल में उनका वॉकी-टॉकी पड़ा हुआ था।' उसके बाद बरार के साथ गए जवानों को अंदर की तलाशी में भिंडरांवाले का शव मिला। उसके शव को उत्तरी विंग के बरामदे में लाकर रखा गया, जहां पुलिस, इंटेलिजेंस ब्यूरो और पकड़े गए आतंकियों ने उसकी पहचान की। भिंडरांवाले को कई गोलियां लगीं, तलाशी में मिलीं 51 मशीनगन भिंडरांवाले की मौत 6 जून को हुई थी, लेकिन तलाशी के दौरान उसकी लाश 7 जून की सुबह मिली। मार्क टली लिखते हैं, 'भिंडरांवाले की मौत की खबर आने के बाद एक गार्ड की ड्यूटी वहां लगा दी गई थी। तलाशी के लिए 7 जून की सुबह तक इंतजार किया गया। सुबह तलाशी के दौरान भिंडरांवाले, शाहबेग सिंह और अमरीक सिंह के शव तहखाने में मिले।' कुलदीप सिंह बरार अपनी किताब में बताते हैं कि आर्मी को तलाशी में 51 मशीनगन मिलीं। आम तौर पर 800 जवानों की आर्मी यूनिट 8 किलोमीटर एरिया को घेरने के लिए इतने असलहे का इस्तेमाल करती है। ब्रिगेडियर ओंकार एस गोराया ने अपनी किताब 'ऑपरेशन ब्लूस्टार एंड आफ्टर ऐन आईविटनेस अकाउंट' में लिखा है, भिंडरांवाले के शव की शिनाख्त सबसे पहले डीएसपी अपर सिंह बाजवा ने की। मैं भी बर्फ की सिल्ली पर लेटे हुए भिंडरांवाले के शव को पहचान सकता था, हालांकि पहले मैंने उसे कभी जीवित नहीं देखा था। उसका जूड़ा खुला हुआ था और उसके एक पैर की हड्डी टूटी हुई थी। उनके शरीर पर गोली के कई निशान थे। 7 जून की सुबह करीब दस बजे आकाशवाणी पर अनाउंस किया गया कि जरनैल सिंह भिंडरांवाले की डेड बॉडी मिल गई है। शाम साढ़े सात बजे भिंडरांवाले का अंतिम संस्कार कर दिया गया। मार्क टली लिखते हैं, 'उस समय मंदिर के आसपास करीब दस हजार लोग जमा हो गए थे, लेकिन सेना ने उनको रोके रखा। भिंडरांवाले, अमरीक सिंह और दमदमी टकसाल के उप प्रमुख थारा सिंह के शव को मंदिर के पास चिता पर रखा गया।' 'चार पुलिस अधिकारियों ने भिंडरांवाले के शव को लॉरी से उठाया और चिता तक लाए। एक ऑफिसर ने मुझे बताया कि वहां मौजूद बहुत से पुलिसकर्मियों की आंखों में आंसू थे।' वहीं शाहबेग सिंह के अंतिम संस्कार का कोई ऑफिशियल रिकॉर्ड नहीं मिलता। भिंडरांवाले के पाकिस्तान भाग जाने की अफवाह कैसे उड़ी भिंडरांवाले का अंतिम संस्कार हो जाने के बावजूद कई दिनों तक ये अफवाह फैली रही कि वो जिंदा है। दरअसल, स्वर्ण मंदिर और पाकिस्तान सीमा के बीच की दूरी सिर्फ 28 किलोमीटर है। अफवाह थी कि ब्लू स्टार के दौरान भिंडरांवाले बचकर पाकिस्तान चला गया है। जनरल बरार के मुताबिक, '7 जून से ही कहानियां चलने लगी थीं कि भिंडरांवाले सुरक्षित पाकिस्तान चला गया था। पाकिस्तान के टीवी चैनल घोषणा कर रहे थे कि भिंडरांवाले हमारे पास है और 30 जून को हम उसे टीवी पर दिखाएंगे।' सुभाष किरपेकर के मुताबिक, 3 जून को जब वे भिंडरांवाले से मिले तो AISSF के जनरल सेक्रेटरी हरविंदर सिंह संधू से भी मिले थे। उसने सुभाष से कहा था, 'पाकिस्तान से मदद लेने में कोई बुराई नहीं है क्योंकि दिल्ली (सरकार) पाकिस्तान और सिखों, दोनों के साथ एक जैसा बर्ताव करती है।' इन खबरों के चलते इस अफवाह को और ताकत मिली कि भिंडरांवाले पाकिस्तान में है। जनरल बरार के मुताबिक,'मेरे पास सूचना और प्रसारण मंत्री एच के एल भगत और विदेश सचिव एमके रस्गोत्रा के फोन आए कि आप तो कह रहे हैं कि भिंडरांवाले की मौत हो गई है, लेकिन पाकिस्तान कह रहा है कि वो उनके यहां है।' बरार आगे कहते हैं, 'मैंने उन्हें बताया कि भिंडरांवाले के शव की पहचान हो गई है। उसे उसके परिवार को सौंप दिया गया था। अंतिम संस्कार से पहले समर्थकों ने आकर उसके पैर छुए हैं।' हालांकि 30 जून का बेसब्री से इंतजार था। बरार अपनी किताब 'ऑपरेशन ब्लूस्टार द ट्रू स्टोरी' में लिखते हैं, 'मैंने भी कौतूहल में उस रात अपना टीवी ऑन किया क्योंकि इस तरह की अफवाहें थीं कि भिंडरांवाले की शक्ल से मिलते-जुलते किसी आदमी की प्लास्टिक सर्जरी करके पाकिस्तानी टीवी पर दिखाया जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।' 6 साल पहले पड़ी थी ऑपरेशन ब्लू स्टार की नींव दरअसल, जरनैल सिंह भिंडरांवाले सिखों के कट्टर धार्मिक समूह दमदमी टकसाल का प्रमुख था। 13 अप्रैल 1978 को बैसाखी के दिन निरंकारी समुदाय का समागम हुआ। इस जुलूस के विरोध में भिंडरांवाले ने दरबार साहिब के पास परंपरागत सिखों की सभा बुलाई और जोरदार भाषण दिया। इसके बाद अखंड कीर्तनी जत्था और दमदमी टकसाल के लोगों का एक जुलूस निरंकारियों की तरफ बढ़ा। झड़प में 13 सिख और 2 निरंकारी मारे गए। 24 अप्रैल 1980 को निरंकारी पंथ प्रमुख गुरबचन सिंह की दिल्ली में उनके घर पर हत्या कर दी गई। अगले ही साल पंजाब केसरी के संस्थापक और संपादक लाला जगत नारायण की हत्या हुई। इन हत्याओं का आरोप भिंडरांवाले और उसके नए पॉलिटिकल फ्रंट 'दल खालसा' पर था। 1982 में भिंडरांवाले ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से सटे गुरु नानक निवास को अपना ठिकाना बना लिया। मंदिर के ठीक सामने अकाल तख्त है। यहीं से भिंडरांवाले सिखों के लिए कट्टर उपदेश और आदेश जारी करने लगा था। केंद्र की कांग्रेस सरकार ने 82 से 84 तक कई बार भिंडरांवाले को पकड़ने की कोशिश की थी, लेकिन नाकाम रही। अप्रैल 1983 में DIG एएस अटवाल की स्वर्ण मंदिर के कैंपस में सरेआम हत्या हुई थी। जिसके बाद स्थिति बिगड़ती देख, अक्टूबर 1983 में पंजाब की विधानसभा भंग कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। दिसंबर 1983 में भिंडरांवाले अकाल तख्त में जा घुसा। 27 मई 1984 को शिरोमणि अकाली दल के नेताओं ने भी भिंडरांवाले को समझाने की कोशिश की थी, लेकिन जब कोशिशें नाकाम हुईं, तो मिलिट्री ऑपरेशन का ही रास्ता बचा। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस पूरे ऑपरेशन में 300 से 400 लोगों की मौत हुई, जबकि 90 सैनिक शहीद हुए। हालांकि चश्मदीद और मामले को करीब से देखने वाले लोगों की मानें तो करीब 1000 लोग मारे गए और 250 जवान शहीद हुए थे। --------------------------------- ऑपरेशन ब्लू स्टार से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें: राहुल गांधी ने माना- ऑपरेशन ब्लू-स्टार गलती थी:कहा- 80 के दशक में कांग्रेस से हुई गलतियों की जिम्मेदारी लेने को तैयार हूं राहुल गांधी ने माना कि 1984 का ऑपरेशन ब्लू स्टार गलती थी। मई 2025 में अमेरिका की ब्राउन यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम के दौरान राहुल से ऑपरेशन ब्लू स्टार पर सवाल पूछा गया था। पूरी खबर पढ़ें...