उदयपुर के आदिवासी बहुल झाड़ोल इलाके के घने जंगलों में गुजरात बॉर्डर से 14 किलोमीटर पहले बसे टिंडोरी गांव में कथौड़ी परिवार की बस्ती है । करीब 35 परिवारों की इस बस्ती में किसी भी तरह की कोई सुविधा नहीं हैं । यहां गत पिछले सात दशक से पानी के पानी की किल्लत है । ये लोग बारिश के मौसम में पास ही नदी का पानी पीने के काम में लेते हैं । बाकी के दिनों में करीब ढाई किलोमीटर दूर से पानी लाते हैं । लेकिन लॉकडाउन में इन्होंने एकजुटता दिखाकर जुगाड़ के साधनों से कुआं खोद डाला और अपनी समस्या का समाधान कर लिया ।
इसके लिये 14 परिवारों ने एक योजना बनायी और इनके 40 सदस्यों ने गांव में ही कुंआ खोदना शुरू कर दिया । जुगाड़ की क्रेन बनाई और स्थानीय औजारों से कुंआ खोदने शुरू किया ।
कुंआ खोदने के दौरान इन परिवारों का जज्बा इतना जबर्दस्त था कि ये लोग पूरे दिन सिर्फ इसी काम में लगे रहते थे । इनमें ऐसी एकता पहली बार देखी गई बताई जा रही है जब इन्होने एक जाजम पर आकर जन हितार्थ को कोई काम किया हो ।
आदिवासी समाज के ये सभी लोग पड़ोसी गुजरात राज्य में मजदूरी करते थे, लेकिन लॉकडाउन के कारण इन्हें वापस अपने गांव आना पड़ा । इसी दौरान समय का सदुपयोग करते हुये इन्होंने आपदा में अवसर खोज लिया और जुट गये काम में लकड़ी से बनाई गई जुगाड़ की क्रेन से मिट्टी बाहर निकाली गई और पत्थरों से चुनते हुए कुंए का निर्माण कर दिया ।
ग्रामीण क्षेत्र में विकास कार्य करने वाली सेवा मंदिर संस्थान ने इन आदिवासियों को एकजुट करने का काम किया । एकजुट होने के बाद आदिवासियों को अपनी शक्ति का अहसास हुआ और लॉकडाउन में इन्होंने कुंआ खोद डाला । यह कुंआ करीब 35 फीट गहरा खोदा गया है । 4 महीनों की मेहनत से कुंआ तैयार हो गया और इसमें अच्छा पानी भी आ गया ।
आदिवासियों की इस टीम ने अपने जज्बे और मेहनत से बरसों पुरानी अपनी समस्या को दूर कर लिया । अब इस कुएं से पाइप लाइन बिछाकर लोगों के घरों तक पेयजल सप्लाई करने की योजना बनायी जा रही है ।
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