कुछ एसी बातें जो मजबूर करती है सोचने पर, रामायण में शबरी के जुठे बैर भगवान श्री राम ने खाए । अब शबरी को रामायण में एक आदिवासी महिला बताया गया है । और हिन्दू धर्म की बताया गया है। साथ ही केवट ने भगवान श्री राम को नोका में बिठा कर नदी पार करवाई है । केवट को भी रामायण काल में आदिवासी समाज का एक अभिन्न हिस्सा और हिन्दू धर्म बताया गया है । और सबसे बड़ी बात तो यह है कि रामायण के रचयिता स्वयं आदिवासी समाज के महर्षि वाल्मीकि है । फिर भी आज कुछ आदिवासी समाज के लोग हिन्दू होने पर एतराज़ करते हैं एसा क्यों?
अगर हिन्दू नाम से कोई नफरत है तो यह नफरत कहा से आई ? कही न कही इसके पिछे कोई बहुत बड़ा राज है जो हिन्दुस्तान को खतरे में डालने की तैयारी कर रहा है । आदिवासी समाज के लोग शुरू से ही धार्मिक प्रवृत्ति के और भोले स्वभाव के होते हैं जिसका फायदा उठा कर कोई न कोई इन्हें बरगला रहा है ।
राजनीति के मंच पर भी अक्सर इस मुद्दे को उठाते देखा गया है । एक नेता अपने आप को हिन्दू होने पर गर्व महसूस कर रहा है वहीं दुसरी तरफ दुसरा नेता हिन्दू धर्म को मानने के लिए तैयार ही नहीं है । जबकि दोनों नेता आदिवासी समाज से ही ताल्लुक रखते हैं। असमंजस की स्थिति तब पैदा होती है कि जब अपने आप को एक नेता हिन्दू धर्म का नहीं होना बता रहा है तो फिर उसका धर्म क्या है?
राजस्थान की विधानसभा में आज क्या हुआ
जनजातियों को हिंदू नहीं कहने के संबंध में 2020 में झारखंड के कैथोलिक चर्च ने वहां के राज्य के राजनीतिक मुखिया को ज्ञापन दिया उसके उपरांत 11 नवंबर 2020 को झारखंड विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर सरना धर्म/आदिवासी धर्म नाम से एक बिल पारित कर भारत सरकार को प्रेषित किया है। उसके पीछे की पूरी रणनीति सामाजिक, राष्ट्रीय, विकास और जनजातियों का कल्याण कदापि नहीं है यह मात्र राजनीतिक और एकमात्र राजनीतिक है।
ज्ञात रहे नागरिक अधिकार अधिनियम 1955, हिंदू विवाह अधिनियम, उत्तराधिकार अधिनियम, अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम, पेसा एक्ट 1996 सहित संविधान के अनुच्छेद 13 में जनजातियों के प्रथा व्यवस्था को स्वीकार करते हुए जनजातियों को हिंदू माना है।
आज एक बार फिर यह मामला राजस्थान में उजागर हुआ। भगवान शिव के पुत्र गणेश जी के नाम वाले एक विधायक गणेश घोगरा ने इस प्रकरण को उठाया और भगवान राम के नाम वाले एक दूसरे विधायक गोपीचंद मीणा ने इस प्रकरण को आगे बढ़ाया और कहा कि हम सब हिंदू हैं लेकिन हमें कुछ और नहीं चाहिए बस एक मात्र यही चाहिए हमें अलग धर्म कोड चाहिए।
यह कैथोलिक चर्च प्रायोजित एजेंडा युवाओं में चलाया जा रहा है और जनजाति के विकास सामाजिक सांस्कृतिक धार्मिक सुचिता और अच्छाई और सच्चाई की पूरी पृष्ठभूमि को खत्म करते हुए उन्हें अपंग करने की कोशिश की जा रही है।
इस तरह की टिका टिप्पणी के माध्यम से आजादी के दौरान मानगढ़ आंदोलन 1913 जो भगवान शिव और हवन प्रणाली पर आधारित था, को धूमिल करने की कोशिश की जा रही है । बेणेश्वर धाम जो आदिवासियों का महा धाम है महादेव का स्थान है त्रिवेणी है और प्रयागराज का प्रतीक है उसके परंपरा को नष्ट करने की कोशिश की जा रही है । संत सुरमाल दास जी महाराज के जय सीताराम को नष्ट करने की कोशिश की जा रही है और समाज के बीच चर्च द्वारा प्रायोजित विचारधारा को फैलाने की कोशिश की जा रही है।
मूल हिंदुओं को संवैधानिक अधिकारों और कानूनी संरक्षण से बाहर रखने की मानसिकता वाले ये लोग धर्म अंतरित ईसाइयों और मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा करना चाहते हैं बस यही एकमात्र उनका एजेंडा है यही तो कैथोलिक चाहते हैं।
राजनीतिक वाले तो राजनीति करते रहेंगे परंतु एक समाज के रूप में हमें ऐसे असामाजिक तत्वों से सावधान रहें और सतर्क रहें । जरूरी होने पर सामूहिक स्तर पर इसका विरोध करने की भी आवश्यकता रहेगी।