कोरोना महामारी के दौरान लोग जमकर उड़ा रहे हैं सरकार की गाइडलाइन की धज्जियां और उड़ाएंगे भी क्यों नहीं सरकार ने बनाई ही ऐसी गाइडलाइन है जिसकी उड़ रही है धज्जियां। सुबह 6:00 से 11:00 तक किराना की दुकान खुली रखने से क्या भीड़भाड़ कम हो जाती है? सब्जी वालों को मेन बाजार में खड़ा करने से क्या भीड़ बार कम हो जाती है?
सब्जी वालों को गली मोहल्लों में खड़ा रखने पर भी लोग सब्जी खरीदने बाजार में ही क्यों आते हैं?
एक घर में एक व्यक्ति 1 महीने तक घर पर बैठकर खाए उतना राशन 1 दिन में दुकान से जाकर ला सकता है फिर पूरे महीन बाजार में इस विकट परिस्थिति को देखते हुए क्या लेने आता है?
ऐसी गाइडलाइन से पुलिस प्रशासन भी परेशान है।
शादी समारोह में 50 लोगों को इजाजत दी गई अब देखा जाए तो एक बड़े परिवार में अगर किसी के पांच भाई हैं तो स्वभाविक है उस परिवार में 50 लोग घर के ही हो जाते हैं । ऐसे में अगर वह अपने करीबी रिश्तेदार जैसे अपने बेटी और दामाद को शादी में बुलाए या अपने बेटे के ससुर परिवार को शादी में बुलाए अपने बुआ भतीजी को बुलाए तो उस शादी में 100 लोग वैसे ही हो जाते हैं। अब हम बात करते हैं गाइडलाइन कि जब 50 लोगों को शादी में आने की सरकार ने परमिशन दी तो यह स्वभाविक है कि उस परमिशन के लिए शादी वाले सरकार के नुमाइंदों के पास परमिशन लेने के लिए जाते हैं। जिसकी पूरी जानकारी सरकारी महकमे के पास पहले से ही पहुंच जाती है फिर उस गांव के पटवारी ग्राम सेवक आशा सहयोगी एएनएम इन सभी को इस बात की जानकारी भेज दी जाती है कि इस परिवार में शादी होने वाली है ।और वह इस तारीख को होने वाली है।
इसके बावजूद गांव के पटवारी ग्राम सेवक एएनएम या आंगनवाड़ी कार्यकर्ता जिसको यह जानकारी दी गई उन्होंने उस शादी में 50 से अधिक लोग इकट्ठे हुए तो इस बात का आपत्ती जताना उन्होंने क्यों उचित नहीं समझा? जब ऐसे शादी समारोह में पुलिस पहुंचकर कार्रवाई कर रही है तो इससे पहले उस गांव के जिम्मेदार पटवारी ग्राम सेवक या जो भी जिम्मेदार थे उनकी जिम्मेदारी क्यों नहीं बनी? उस शादी वाले परिवार पर जुर्माना डालने से बेहतर है कि उन जिम्मेदारों पर जुर्माना दिया जाए जिन्होंने जानबूझकर इसकी सूचना आगे नहीं पहुंचाई या शादी में 50 से अधिक लोग इकट्ठा होने पर या सोशल डिस्टेंसिंग की पालना नहीं करने पर उन्हें टोका नहीं और आपत्ति नहीं जताई।
अब बात करते हैं उन लोगों की जिन्होंने सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाई
जब उन्हें यह ज्ञात है कि उनके गांव के कई लोग कोरोना से ग्रसित हो चुके हैं और कहीं काल का ग्रास बन चुके हैं फिर भी जानबूझकर यह लोग क्यों सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाते हैं ? जब यह कोरोना से पीड़ित होते हैं उन्हें ऑक्सीजन नहीं मिलती है उन्हें अस्पताल में बेड नहीं मिलते हैं उन्हें रेमदेसीविर इंजेक्शन नहीं मिलते हैं तो सरकार को कोसते हैं क्या सरकार ने उन्हें पहले इस बात का संदेश नहीं दिया था ? क्या उन्हें यह नहीं बोला गया था कि सरकार की गाइडलाइन का पालन करें ? और कोरोना से बचें फिर क्यों कोरोना से बचा नहीं गया? जब जानबूझकर कोई अपनी मौत मांगता है तो उसे कोई नहीं बचा सकता ऐसे में प्रशासन को शक्ति दिखाने की जरूरत है। कोरोना के बढ़ते केस और होती मौतों को देखते हुए इस वक्त पूरे देश में सख्त लॉकडाउन की जरूरत है लेकिन फिर भी न जाने किस मंजर के इंतजार में सरकार लॉकडाउन नहीं लगा कर तमाशा देखती जा रही है जब यह पता है कि कोरोनावायरस एक दूसरे को छूने से या भीड़ भडाके में जाने से होता है तो फिर क्यों लोग डाउन नहीं लगाया जा रहा है?
प्रजा अगर बेकाबू हो तो राजा का कर्तव्य बनता है कि प्रजा को काबू में करें । अन्यथा मंजर और खराब हो सकते हैं ।