झंडे की आड़ में
सन्नाटों में आज सिसकियां लेती है।
भारत की आधी में बर्बादी होती है।।
जीवन में सरकारें आती जाती है।
हिम्मत का हथियार
नहीं वो खोलती है ।
अंधों की यह भोली-भाली जनता है।
जुल्मों की हथकड़ियों की ये जनता है।।
झूठ छल और कपट का बोलबाला है।
जीवन में दुखों का यहबोलबाला है ।।
कल के गरीब आज अमीर बन बैठे हैं ।
दूसरों के दुख को वोनहींसमझते हैं ।।
मन के भावों को वो
नहीं अपनाते है।
जीवन के संगर्षो को वो नहीं अपनाते है।
आज तुम क्या बात करोगे जनता है ।
।झंडे की आड़ में
देश के वासी है ।
देश की सरहदों पर हमला बाकी है।।
मरने वाले शहीद हुएलाश बाकी है।
बेटी बहूए आज जो वोजागरूक है ।
पढ़ी लिखी यह घर की जो मूरत है।।
अंधेरे के गलियारों की वो सूरत है ।
आज भारत की प्रगति कीये मूरत है ।।
कवि प्रवीण पंड्या बस्ती डूंगरपुर राजस्थान