कान्हड दास धाम बड़ा रामद्वारा सागवाड़ा (डूंगरपुर) में चातुर्मास में शाहपुरा धाम के रामस्नेही संत श्री तिलकराम जी ने आज के सत्संग में बताया कि भक्त प्रहलाद भगवान से प्रार्थना करते हैं कि, मेरा किसी भी योनि में जन्म हो, वहां मुझे भगवान की भक्ति मिले ,ऐसा वरदान दो । भगवान सदा भक्तों के दास रहते हैं । भगवान सदा हमारे पास ही रहते हैं , पर हम उन्हें पहचान नहीं पाते । निष्काम भक्ति वालों से भगवान प्रेम करते हैं । ध्यान करना अलग-अलग प्रकार का होता है, कोई खड़े रहकर प्रणाम करता है, कोई दंडवत ,तो कोई समाधि में रहकर प्रणाम करता है । हीरे की पहचान जौहरी ही कर सकता है, गुरु ही भगवान की भक्ति की पहचान करवा सकता है । जैसा विचार होगा वैसा ही ज्ञान होगा । भगवान का आरंभ व अंत नहीं है, जिसका कभी अंत नहीं होता वही प्रकाश है । संत ने कहा कि धरती पर जब-जब अधर्म का बोलबाला होता है, तब भगवान का किसी न किसी रूप में अवतार होता है । भगवान चारों दिशाओं में विद्यमान है, इन्हें प्राप्त करने का मार्ग मात्रा सच्चे मन की भक्ति ही है ।
प्रेम से पुकारने व सच्चे मन से सुमिरन करने पर भगवान कहीं भी प्रकट हो सकते हैं । धर्म व्यक्ति को अंदर से एकजुडटता का भाव पैदा करता है । वही संप्रदाय व्यक्ति को बाहरी रूप से एक बनाता है । यह संसार भगवान का एक सुंदर बगीचा है । संत ने कहा राम नाम से पाप नष्ट होते हैं, मोक्ष की प्राप्ति होती है । राम के नाम से ज्ञान चक्षु खुलते हैं । जो सच्चे मन से जाप करता है, उसे पूर्ण फल मिलता है । परलोक से भगवान का परमधाम प्राप्त होता है । राम नाम में असुरों की माया को नष्ट करने की शक्ति है । मनोकामनाएं राम नाम से पूरी होती है । इस कलयुग में सबसे फलदायी उपाय राम नाम ही माना गया है ।
राम नाम का जाप सबसे सरल और प्रभावी उपाय है । जो व्यक्ति एकाग्रता से सत्संग का श्रवण करता है ,वह जीवन के दु:खों से मुक्त होकर आत्मिक शांति प्राप्त करता है । सत्संग में कहीं बातों को जीवन में उतारना ही सच्चे सुख की ओर ले जाता है । सांसारिक वस्तुओं में सुख केवल आभास होता है । आत्मिक सुख शास्त्रों एवं सत्संग के श्रवण और आचरण से ही मिलता है । चातुर्मास का मुख्य उद्देश्य यही है कि व्यक्ति व्यस्त जीवन से समय निकालकर आत्मनिरीक्षण करें और धर्म की ओर बढे । सच्चा सुख चाहिए तो हमें शास्त्रो का श्रवण करना चाहिए, मिथ्या सुख चाहिए तो व्यक्ति भ्रमण करता रहेगा । संसार में सुख केवल सुखाभास पर टिका है । दूसरों के प्रति सद्भाव और सेवा भाव रखना चाहिए । ईर्ष्या और देृष जीवन में दु:ख और पतन का कारण बनते हैं । हर व्यक्ति को जीव जंतु एवं प्राणी के हित में सोचना चाहिए, दूसरों की दुख दूर करने की भावना रखनी चाहिए । मन, व्यवहार और दिल को साफ रख कर सबके हित में सोचना ही महापुरुष बनने का मार्ग है । प्रवक्ता बलदेव सोमपुरा ने बताया कि -"तन मे राम मन में राम, रोम रोम में समाय रे ,सबसे कर लो प्रेम जगत में ,कोई नहीं पराया रे"- भजन से भक्त झूम उठे I आज का संत प्रसाद निरंजनप्रकाश पंचाल परिवार का रहा I आज के सत्संग में रामस्नेही नाथू परमार ,विष्णु भावसार, रमेश राठौड़, सुरेंद्र शर्मा के अतिरिक्त संगीता सोनी, राजेश्वरी शर्मा, प्रेमलता भट्ट ,पुष्पा सेवक, संगीता सोनी, गुलाब भावसार, बदी मीणा, प्रेमलता पंचाल ,लक्ष्मी सोनी, प्रेमलता सुथार समेत अन्य श्रद्धालु मौजूद रहे ।