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    क्या दो से ज्यादा बच्चे वाले लड़ सकेंगे निकाय-पंचायत चुनाव?:मंत्री बोले- सरकारी कर्मचारियों को छूट तो जनप्रतिनिधियों को क्यों नहीं, सरकार कर रही विचार

    5 days ago

    राजस्थान में पंचायत और निकाय चुनाव लड़ने के लिए दो बच्चों की बाध्यता ​हटाई जा सकती है। विभिन्न संगठनों, नेताओं और जनप्रतिनिधियों की मांग पर सरकार ने इस पर मंथन शुरू कर दिया है। पंचायतीराज विभाग और स्वायत्त शासन विभाग से अनौपचारिक रूप से रिपोर्ट भी मंगवाई जा चुकी है। फिलहाल दो से ज्यादा संतान वाले पंचायतीराज और शहरी निकायों के चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने कहा- जब सरकारी कर्मचारियों पर तीन संतान का प्रतिबंध लगा, उसमें राहत दे दी गई। फिर जनप्रतिनिधियों के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए। उनको भी इतनी छूट तो मिलनी चाहिए। देश और राज्य के हित में जनसंख्या नियंत्रण बहुत महत्वपूर्ण विषय है। इसके बारे में जनप्रतिनिधियों और सरकारी कर्मचारियों के लिए दो अलग-अलग नियम हैं। सरकारी कर्मचारियों पर दो बच्चों का नियम लागू हुआ था, लेकिन उनको छूट दे दी गई। शहरी निकाय और पंचायतीराज जनप्रतिनिधियों को नहीं दी गई। कर्मचारी और जनप्रतिनिधियों में भेदभाव नहीं किया जा सकता यूडीएच मंत्री ने कहा- अब जनप्रतिनिधियों निकाय और पंचायती राज के चुनाव लड़ने वालों की ओर से यह मांग उठाई जा रही है। उस पर विचार तो करना पड़ेगा। कर्मचारी और जनप्रतिनिधियों में ज्यादा भेदभाव नहीं किया जा सकता। जब एक को राहत मिली है तो दूसरे को भी राहत मिलनी चाहिए। मुख्यमंत्री स्तर पर चर्चा हुई, एक बार सबकी राय ले रहे उन्होंने कहा- मुख्यमंत्री से एक बार चर्चा हुई है, उनका मानना था कि एक बार सबसे राय ली जाए। जब मांग आती है तो मांग पत्र को विभाग में भेजा जाता है। विभाग वापस मांग पत्र को आगे से आगे अधिकारी तक भेजते हुए मंत्रियों तक भेजता है। निर्णय तो अंतिम रूप से सरकार के स्तर पर होना है। एक बार सबसे चर्चा के बाद जो भी उचित होगा वह निर्णय लिया जाएगा। कई नेताओं और संगठनों ने उठाई तीसरी संतान की बाध्यता हटाने की मांग झाबर सिंह खर्रा ने कहा- शहरी निकाय और पंचायती राज संस्थाओं में एक निश्चित तारीख के बाद दो से ज्यादा बच्चे वालों को चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दिया गया है। उस तारीख से पहले चाहे किसी के कितनी ही संतान हो। वो निकाय और पंचायतीराज संस्थाओं के चुनाव लड़ सकता है। एक समय सरकार ने सरकारी कर्मचारियों पर भी दो संतान की पाबंदी लगाई थी। दो से ज्यादा बच्चे होने पर प्रमोशन समेत कई लाभ नहीं मिलते थे। लंबे समय से ही कर्मचारियों को छूट देने की मांग चलती रही थी। कुछ साल पहले सरकारी कर्मचारियों को तीसरी संतान की छूट और दी गई, तीन संतान वाले कर्मचारियों पर प्रमोशन की पाबंदी हटा ली गई। साल 1994-95 में लगी थी रोक 1994-95 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत की सरकार में राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 बना था। इसके मुताबिक जिन जनप्रतिनिधियों के दो से अधिक बच्चे होंगे, वो पंचायत और निकाय चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। इसमें चुनाव जीतने के बाद तीसरा बच्चा पैदा होने पर पद से हटाने का भी प्रावधान किया गया था। तब से अब तक इसमें कोई शिथिलता नहीं दी गई है। कर्मचारियों को मिल चुकी राहत साल 2002 में दो से ज्यादा बच्चे होने पर सरकारी नौकरी नहीं मिलने का कानून लाया गया। इसमें प्रावधान किया गया कि सरकारी नौकरी लगने के बाद भी तीसरा बच्चा होता है तो उसका 5 साल तक कोई प्रमोशन नहीं होगा। नौकरी में रहते हुए तीन से ज्यादा बच्चे पैदा किए तो कंपलसरी रिटायरमेंट देने का नियम भी बनाया गया। हालांकि तत्कालीन वसुंधरा सरकार ने 2018 में इस नियम को खत्म करने की घोषणा की थी। 5 साल तक प्रमोशन रोकने के नियम में भी शिथिलता देकर इसे 3 साल कर दिया था। राजस्थान विधानसभा में भी उठ चुका मामला विधानसभा में भी यह मामला उठ चुका है। इसी साल हुए बजट सत्र में चित्तौड़गढ़ से विधायक चंद्रभान सिंह आक्या ने सरकार से पूछा था कि प्रदेश में पंचायत चुनाव में तीन संतान होने पर चुनाव नहीं लड़ सकते, जबकि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में यह प्रतिबंध नहीं है। पंचायत चुनाव में इस नियम को हटाया जाए। इस पर संसदीय कार्यमंत्री जोगाराम पटेल ने जवाब देते हुए कहा था कि मामला गंभीर है, इस पर विचार किया जाएगा। इससे पहले भी यह मुद्दा उठ चुका है। कांग्रेस सरकार में 2019 में यह मांग पूर्व विधायक हेमाराम चौधरी उठा चुके हैं। उन्होंने कहा था कि यह नियम सांसदों और विधायकों के लिए न होकर पंचायतीराज चुनावों में लागू होता है तो यह संविधान के विरुद्ध है। ये भी पढ़ें... वोटर-लिस्ट में दो जगह नाम तो हो सकती है सजा:SIR में 70% वोटर्स को दस्तावेज नहीं देने होंगे, CEO बोले-बिहार से सबक लिया वोटर लिस्ट के विशेष गहन परीक्षण (SIR) में प्रदेश के 70.55 प्रतिशत वोटर्स को कोई दस्तावेज नहीं देना होगा। राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवीन महाजन ने मीडिया से बातचीत में कहा कि बिहार में पहले फेज में दस्तावेज लेने से जो नरेटिव बना था, उससे हमने सबक लिया। हमने पहले ही वोटर्स की मैपिंग शुरू करवा दी थी। हमारे 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदाताओं को जिस दिन से SIR की घोषणा हुई है, उस दिन से ही कोई दस्तावेज देने की जरूरत नहीं होगी। (पूरी खबर पढ़ें)
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