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    पहलवानों ने पैरों से कुचलकर किया रावण वध कोटा के नांता में 150 साल पुरानी परंपरा आज भी जीवित

    2 weeks ago

    कोटा।

    दशहरे पर जहां देशभर में रावण का दहन अग्नि से किया जाता है, वहीं कोटा के नांता क्षेत्र में एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है। यहां रावण को जलाया नहीं जाता बल्कि अखाड़े के पहलवान कुश्ती लड़कर और पैरों से कुचलकर उसका वध करते हैं। यह परंपरा पिछले लगभग 150 वर्षों से जारी है। गुरुवार सुबह करीब 10 बजे लिम्बजा मातेश्वरी मंदिर स्थित बड़ा अखाड़ा में पहलवानों ने रावण और मंदोदरी की प्रतिमा को कुचलकर वध किया।

    अखाड़ा अध्यक्ष सोहन जेठी ने बताया कि अखाड़े की पवित्र मिट्टी से ही रावण और मंदोदरी की प्रतिमाएं तैयार की जाती हैं। श्राद्ध पक्ष से इसकी तैयारी शुरू होती है और सात दिन की मेहनत के बाद नवरात्र स्थापना से एक दिन पहले प्रतिमा पूरी होती है। हर साल की तरह इस बार भी मिट्टी में दूध, घी, शहद, दही और गेहूं मिलाकर उसे उपजाऊ बनाया गया ताकि उसमें ज्वार उग सके। नवरात्र के नौ दिन तक प्रतिमाओं पर हरे-भरे ज्वार लहलहाते रहे।

    नवरात्र के दौरान मंदिर के पट बंद रहते हैं और रामनवमी पर हवन के बाद ही भक्तों के लिए खुलते हैं। इन दिनों अखाड़े में रोजाना देवी भजनों का आयोजन और गरबा होता है। दशहरे की सुबह विशेष अनुष्ठान के बाद पहलवानों ने रावण से प्रतीकात्मक कुश्ती लड़ी और फिर पैरों से रौंदकर उसे नष्ट कर दिया। ढोल-नगाड़ों, माता लिम्बा के जयघोष और जयकारों से पूरा माहौल रणक्षेत्र जैसा बन गया। इस मौके पर रावण की हंसी और आवाज भी माइक से प्रसारित की गई, जिससे वातावरण और भी जीवंत हो उठा।

    वध के बाद बुजुर्ग आपस में ज्वार का वितरण करते हैं, जिसे एकता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। समाजजन बड़ों का आशीर्वाद लेकर खुशहाली की कामना करते हैं।

    जेठी समाज मूल रूप से गुजराती ब्राह्मण हैं, जिन्हें कुश्ती का शौक था। करीब 300 साल पहले गुजरात से कच्छ क्षेत्र के लोग कोटा आए थे। महाराजा उम्मेद सिंह उनकी कुश्ती कला से प्रभावित होकर उन्हें यहीं बसने का आग्रह किया और किशोरपुरा व नांता में अखाड़े बनवाए। रियासत काल में दशहरे पर निकलने वाली बृजनाथजी की सवारी की सुरक्षा का जिम्मा भी जेठी समाज के पहलवानों को ही सौंपा जाता था। वर्तमान में कोटा में जेठी समाज के लगभग 300 परिवार बसे हैं और यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ रही है।

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