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    हंगरी के लेखक लास्जलो को साहित्य का नोबेल:किताब पर 7 घंटे लंबी फिल्म बनी; खुद के यहूदी होने की बात 11 साल बाद पता चली

    1 week ago

    इस साल साहित्य का नोबेल हंगरी के लेखक लास्जलो क्रास्नाहोरकाई को मिला है। स्वीडिश एकेडमी ने गुरुवार को इसका ऐलान किया। स्वीडिश एकेडमी ने कहा कि लास्जलो की रचनाएं बहुत प्रभावशाली और दूरदर्शी हैं। वे दुनिया में आतंक और डर के बीच भी कला की ताकत को दिखाती हैं। लास्जलो को 11 मिलियन स्वीडिश क्रोना (10.3 करोड़ रुपए), सोने का मेडल और सर्टिफिकेट मिलेगा। पुरस्कार 10 दिसंबर को स्टॉकहोम में दिए जाएंगे। लास्जलो को 2015 में मैन बुकर इंटरनेशनल प्राइज और 2019 में नेशनल बुक अवॉर्ड फॉर ट्रांसलेटेड लिटरेचर मिल चुका है। उनकी मशहूर किताब सतांटैंगो पर 7 घंटे लंबी फिल्म बन चुकी है। लास्जलो यहूदी धर्म के हैं लेकिन यह बात उन्हें 11 साल की उम्र का होने पर पता चली थी। लास्जलो की किताब पर 7 घंटे लंबी फिल्म बनी लास्जलो हंगरी के सबसे प्रतिष्ठित समकालीन लेखकों में से एक हैं। उनकी किताबें अक्सर दर्शनात्मक होती हैं, जिनमें मानवता, अराजकता और आधुनिक समाज के संकटों का जिक्र होता है। लास्जलो क्रास्नाहोरकाई डीप थिंकिंग वाली उदास कहानियां लिखते हैं। साल 1985 में आई 'सतांटैंगो' उनकी सबसे मशहूर किताब है। 1994 में इस किताब पर सतांटैंगो नाम से ही 7 घंटे लंबी फिल्म भी बनाई गई थी। इसे अब तक की सर्वश्रेष्ठ आर्टहाउस फिल्मों में से एक माना जाता है। इसकी कहानी एक छोटे से गांव और वहां के लोगों की मुश्किल जिंदगी के इर्द-गिर्द घूमती है। इसमें अराजकता, धोखा और मानव स्वभाव की कमजोरियों को दिखाया गया है। यह किताब धोखे की कहानी है, जिसमें एक पुराने खंडहर फार्महाउस में कुछ गरीब लोग रहते हैं। वे सोचते हैं कि अब ज्यादा पैसा मिलने वाला है, लेकिन सब कुछ उल्टा हो जाता है। इसके अलावा उनकी किताब 'द मेलांकली ऑफ रेसिस्टेंस' पर भी फिल्म बन चुकी है। 11 साल की उम्र में यहूदी होने का पता चला लास्जलो का जन्म 5 जनवरी 1954 को हंगरी के ग्युला शहर में हुआ था, जो रोमानियाई सीमा के पास स्थित है। वे एक मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं। उनके पिता, जॉर्जी क्रास्नाहोरकाई एक वकील थे। उन्होंने अपने यहूदी होने की बात सालों तक छुपाए रखी। लास्जलो को यहूदी होने का पता 11 साल की उम्र में चला था। लास्जलो दो बार शादीशुदा रहे हैं। पहली शादी 1990 में अनिको पेलीहे से हुई। दूसरी शादी 1997 में डोरा कोपचान्यी से हुई, जो एक सिनोलॉजिस्ट (चीन अध्ययन विशेषज्ञ) और ग्राफिक डिजाइनर हैं। दूसरी शादी उनकी नहीं टिक पाई। लास्जलो की तीन बेटियां हैं। फिलहाल वे हंगरी के सेंटलास्लो पहाड़ियों में एक एकांतवासी की तरह रहते हैं। पहले वे बर्लिन (जर्मनी) में कई साल रहे, जहां वे फ्री यूनिवर्सिटी ऑफ बर्लिन में एस. फिशर गेस्ट प्रोफेसर भी बने। वे जर्मनी, चीन, मंगोलिया, जापान, अमेरिका, स्पेन, ग्रीस में लंबा समय बिता चुके हैं। पिछले साल कोरियाई लेखिका हान कांग को मिला था नोबेल 1901 से अब तक साहित्य में नोबेल पुरस्कार 121 बार दिया जा चुका है। हाल के विजेताओं में एनी एर्नाक्स, बॉब डायलन, अब्दुलरजाक गुरनाह, लुईस ग्लुक, पीटर हैंडके और ओल्गा टोकरजुक शामिल हैं। पिछले साल यह पुरस्कार दक्षिण कोरियाई लेखिका हान कांग को मिला, जिन्हें उनके अंतरराष्ट्रीय स्तर के उपन्यास 'द वेजिटेरियन' के लिए जाना जाता है। 1895 में हुई थी नोबेल पुरस्कार की स्थापना नोबेल पुरस्कारों की स्थापना 1895 में हुई थी और पुरस्कार 1901 में मिला। 1901 से 2024 तक साहित्य की फील्ड में 121 लोगों को सम्मानित किया जा चुका है। इन पुरस्कारों को वैज्ञानिक और इन्वेंटर अल्फ्रेड बर्नहार्ड नोबेल की वसीयत के आधार पर दिया जाता है। शुरुआत में केवल फिजिक्स, मेडिसिन, केमिस्ट्री, साहित्य और शांति के क्षेत्र में ही नोबेल दिया जाता था। बाद में इकोनॉमिक्स के क्षेत्र में भी नोबेल दिया जाने लगा। नोबेल प्राइज वेबसाइट के मुताबिक उनकी ओर से किसी भी फील्ड में नोबेल के लिए नॉमिनेट होने वाले लोगों के नाम अगले 50 साल तक उजागर नहीं किए जाते हैं। टैगोर एशिया के पहले लेखक जिन्हें नोबेल मिला रविंद्रनाथ टैगोर एशिया के पहले ऐसे लेखक थे, जिन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। यह सम्मान उन्हें 1913 में उनकी मशहूर किताब गीतांजलि के लिए दिया गया था। यह किताब कविताओं का संग्रह है, जिसमें टैगोर ने जीवन, प्रकृति और ईश्वर के प्रति अपनी गहरी भावनाओं को आसान और सुंदर शब्दों में लिखा है। यह पहली बार था जब किसी गैर-यूरोपीय को साहित्य का नोबेल मिला था। स्वीडिश एकेडमी ने उनकी रचनाओं को गहरी भावनाओं और सुंदर भाषा वाला बताया था। 2024 में दक्षिण कोरिया की लेखिका को मिला था नोबेल पिछले साल यानी 2024 में साहित्य का नोबेल दक्षिण कोरिया की लेखिका हान कांग को मिला। उनकी किताबें बहुत खास हैं क्योंकि वे इतिहास के दुखद पलों को और इंसान की नाजुक जिंदगी को आसान लेकिन गहरे शब्दों में बताती हैं। स्वीडिश एकेडमी ने कहा कि उनकी लेखनी कविता की तरह है, जो दिल को छू जाती है। हान कांग यह पुरस्कार जीतने वाली पहली दक्षिण कोरियाई लेखिका बनीं। यह ऐलान 10 अक्टूबर 2024 को हुआ था। ---------------------------------------------- नोबेल से जुड़ी खबरें भी पढ़ें...
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