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    रतन टाटा के जाने के बाद ग्रुप में विवाद:सरकार को दखल देना पड़ा, आज पहली डेथ एनिवर्सरी; जानें लीडरशिप से लेकर क्या-क्या बदला

    2 weeks ago

    रतन टाटा की आज पहली डेथ एनिवर्सरी है। पिछले साल 9 अक्टूबर 2024 को 86 साल की उम्र में उनका निधन हुआ था। इसके बाद टाटा ग्रुप में लीडरशिप से लेकर कई बड़े बदलाव हुए हैं। इसके अलावा उनके जाने के बाद से ग्रुप में कई विवाद भी चल रहे हैं। 1. रतन टाटा के निधन के बाद विवाद रतन टाटा के निधन के बाद अक्टूबर 2024 में उनके सौतेले भाई नोएल टाटा को टाटा ट्रस्ट का चेयरमैन बनाया गया। वहीं नवंबर 2024 में नोएल को टाटा संस के बोर्ड में भी शामिल किया गया। लेकिन कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया यह फैसला ट्रस्ट के भीतर एकमत नहीं था। इससे टाटा संस को कंट्रोल करने वाले टाटा ट्रस्ट्स में बोर्ड सीट को लेकर सीधा-सीधा बंटवारा हो गया। एक गुट बोर्ड मेंबर नोएल टाटा के साथ है, तो दूसरा गुट मेहली मिस्त्री के साथ। मिस्त्री का कनेक्शन शापूरजी पल्लोनजी फैमिली से है जिसकी टाटा संस में 18.37% हिस्सेदारी है। टाटा संस की बोर्ड सीट को लेकर हुए विवाद के बीच 7 अक्टूबर को सीनियर लीडरशिप ने गृहमंत्री अमित शाह के घर पर 45 मिनट की मीटिंग की। एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने कहा कि घरेलू झगड़े को जल्द निपटा लिया जाए, ताकि कंपनी पर असर न हो। मीटिंग में गृहमंत्री शाह, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के साथ टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन नोएल टाटा, वाइस-चेयरमैन वेणु श्रीनिवासन, टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन और ट्रस्टी डेरियस खंबाटा शामिल हुए। अब टाटा ट्रस्ट्स बोर्ड की 10 अक्टूबर को मीटिंग होगी। 5 पॉइंट में समझें टाटा ग्रुप का पूरा विवाद नाराज ट्रस्टी बोले- बोर्ड बिना डिबेट के फैसले ले रहा मनी कंट्रोल की एक रिपोर्ट के मुताबिक टाटा ट्रस्ट्स के ट्रस्टीज के बीच बढ़ते झगड़े का एक बड़ा कारण टाटा इंटरनेशनल लिमिटेड का 1,000 करोड़ रुपए का फंडिंग प्लान भी है। नोएल टाटा 2010 से इस कंपनी को चला रहे हैं। टाटा इंटरनेशनल लिमिटेड 27 देशों में ऑपरेट करती है। ट्रस्टीज प्रमित झावेरी, मेहली मिस्त्री, जहांगीर एच.सी. जहांगीर और डेरियस खंबाटा ने 11 सितंबर की टाटा ट्रस्ट बोर्ड मीटिंग में फंडिंग को पुश करने के तरीके पर सवाल उठाए। इश्यू ये नहीं कि TIL को फंड्स की जरूरत थी या नहीं, बल्कि फैसला कैसे लिया गया इस पर विवाद था। ट्रस्टीज को लगता है कि इतने बड़े कैपिटल कमिटमेंट पर अच्छे से डिबेट होनी चाहिए थी। ट्रस्टीज ने टाटा मोटर्स के जुलाई में इवेको ग्रुप के नॉन-डिफेंस कॉमर्शियल व्हीकल बिजनेस को खरीदने का भी जिक्र किया। कहा कि उस ट्रांजेक्शन में भी उन्हें लेट स्टेज पर ही इन्फॉर्म किया गया था। 2. नई पीढ़ी को कमान रतन टाटा के निधन के बाद नोएल के बच्चों ने भी टाटा ग्रुप में नई जिम्मेदारियां संभाली हैं। जनवरी 2025 में माया टाटा (36 साल), लिआह टाटा (39 साल) और नेविल टाटा (32 साल) को सर रतन टाटा इंडस्ट्रियल इंस्टीट्यूट (SRTII) के बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज में शामिल किया गया। SRTII महिलाओं को सिलाई, खाना बनाना जैसे स्किल्स की ट्रेनिंग देने वाला संस्थान है। इसकी स्थापना रतन टाटा की दादी नवजबाई टाटा ने 1928 में की थी। यह नियुक्ति SRTII के रिनोवेशन के लिए हुई, जो महिलाओं के सशक्तिकरण पर फोकस करता है। ये दोनों बहनें SRTII के अलावा दोराबजी टाटा ट्रस्ट और रतन टाटा ट्रस्ट से जुड़े छोटे ट्रस्ट्स की ट्रस्टी भी हैं। यह कदम टाटा ग्रुप में अगली पीढ़ी को तैयार करने की रणनीति का हिस्सा है। 3. टाटा ट्रस्ट और कंपनियों में 4 बड़े बदलाव हुए अब जानिए रतन टाटा के सबसे करीबी शांतनु को क्या जिम्मेदारी मिली... रतन टाटा ने अपनी वसीयत में कुछ हिस्सेदारी शांतनु नायडू को भी दी थी। शांतनु रतन टाटा के एग्जीक्यूटिव असिस्टेंट और करीबी दोस्त थे। उन्होंने शांतनु के स्टार्टअप 'गुडफेलोज' (सीनियर सिटीजन्स के लिए कंपैनियनशिप सर्विस) में अपना स्टेक वापस लौटा दिया था, ताकि वो अपने सोशल वेंचर को आगे बढ़ा सकें। फरवरी में टाटा ग्रुप के सबसे यंगेस्ट मैनेजर बने रतन टाटा के निधन के बाद भी शांतनु ने जनवरी 2025 तक रतन टाटा के निजी कार्यालय में काम किया। इसके बाद फरवरी में वे टाटा ग्रुप के सबसे यंगेस्ट मैनेजर बने। उन्हें टाटा मोटर्स में प्रमोट कर जनरल मैनेजर और हेड ऑफ स्ट्रैटेजिक इनिशिएटिव्स चुना गया। अब शांतनु टाटा मोटर्स में इलेक्ट्रिक व्हीकल इनोवेशन स्ट्रैटेजिक प्रोजेक्ट्स संभालते हैं। उनके पिता भी इसी टाटा मोटर्स प्लांट में काम करते थे। इसके अलावा शांतनु अपना स्टार्टअप गुडफेलोज चला रहे हैं। गुडफेलो को सितंबर 2022 में लॉन्च किया गया था। डॉग्स के लिए इनोवेशन कर टाटा की नजर में आए शांतनु शांतनु नायडू अपनी इंजीनियरिंग कंप्लीट कर 2014 में टाटा एल्क्सी में काम करते थे। एक दिन उन्होंने सड़क पर स्ट्रे डॉग्स को गाड़ियों से बचाने का आइडिया सोचा। उन्होंने रिफ्लेक्टिव कॉलर्स (चमकने वाले कॉलर) बनाए, जो रात में डॉग्स को दिखाए। यह प्रोजेक्ट 'मोटोपॉज' नाम से वायरल हो गया। शांतनु ने टाटा ग्रुप के न्यूजलेटर में फीचर होने के बाद रतन टाटा को लेटर लिखा और फंडिंग मांगी। रतन खुद डॉग्स के शौकीन थे। उन्होंने लेटर का जवाब दिया और मुंबई बुलाकर शांतनु की तारीफ की। इस तरह रतन टाटा और शांतनु की दोस्ती की शुरुआत हुई। 2018 में शांतनु MBA कम्प्लीट करने के बाद रतन टाटा के असिस्टेंट बने।
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