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    दिल्ली में अफगान विदेश मंत्री का तालिबानी फरमान:प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकार बैन, कांग्रेस बोली- हमारी धरती पर भेदभाव करने वाले वे कौन

    1 week ago

    तालिबानी विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी ने शुक्रवार को अफगान दूतावास में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, इस दौरान 20 पत्रकार मौजूद थे, लेकिन इनमें एक भी महिला पत्रकार नहीं थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मुत्तकी के साथ आए तालिबान अधिकारियों ने ही ये तय किया था कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में कौन शामिल होगा। हालांकि, भारतीय अधिकारियों ने सुझाव दिया था कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकार भी होनी चाहिए, लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया गया। फिलहाल, यह साफ नहीं है कि तालिबान ने भारत को पहले बताया था या नहीं कि वे महिला पत्रकारों को नहीं बुलाएंगे। कांग्रेस प्रवक्ता शमा मोहम्मद ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि वे हमारी जमीन महिलाओं के खिलाफ भेदभाव का एजेंडा रखने वाले कौन होते हैं? ट्रम्प को बगराम एयरबेस देने से इनकार अमीर खान मुत्तकी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि बगराम एयरबेस किसी को नहीं देंगे। उन्होंने ये भी कहा कि अफगानिस्तान अपनी जमीन का इस्तेमाल किसी देश के खिलाफ नहीं होने देगा। दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पिछले महीने कहा था कि वे अफगानिस्तान में अमेरिका का बनाया हुआ बगराम एयरबेस वापस चाहते हैं। अगर ऐसा नहीं किया गया तो गंभीर नतीजे भुगतने होंगे। मुत्तकी ने कहा कि अफगान लोग कभी अपनी जमीन पर विदेशी सेना को स्वीकार नहीं करेंगे। अगर कोई देश अफगानिस्तान के साथ संबंध बनाना चाहता है, तो डिप्लोमेटिक तरीके से आए, मिलिट्री वर्दी में नहीं। भारत-अफगान रिश्तों का भी जिक्र किया मुत्तकी ने भारत और अफगानिस्तान के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रिश्तों का भी जिक्र किया। उन्होंने भारत को करीबी दोस्त बताया, जो मुश्किल वक्त में अफगानिस्तान के साथ खड़ा रहा। हाल ही में हेरात प्रांत में आए भूकंप के बाद भारत ने सबसे पहले मानवीय मदद भेजी थी। उन्होंने कहा- भारत ने सबसे पहले मदद की। हम भारत को करीबी दोस्त मानते हैं। मुत्तकी ने भारत को अफगानिस्तान के खनिज और एनर्जी सेक्टर में इन्वेस्टमेंट करने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान के संसाधनों का रास्ता तालिबान से होकर जाता है और वे भारत के साथ काम करना चाहते हैं। अफगानिस्तान में लीथियम, कॉपर और रेयर अर्थ मिनरल्स जैसे संसाधनों बड़ी मात्रा में हैं, जो बैटरी और तकनीकी इंडस्ट्री के लिए महत्वपूर्ण हैं। भारत अफगानिस्तान में दूतावास शुरू करेगा विदेश मंत्री जयशंकर ने शुक्रवार को तालिबान सरकार के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी के साथ द्विपक्षीय बैठक के दौरान अफगानिस्तान में भारत का दूतावास फिर से शुरू करने की बात कही। उन्होंने कहा कि भारत काबुल में अपने तकनीकी मिशन को दूतावास में बदलेगा। 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद भारत ने दूतावास बंद कर दिया था। लेकिन एक साल बाद व्यापार, चिकित्सा सहायता और मानवीय सहायता की सुविधा के लिए एक छोटा मिशन खोला था। मुत्तकी गुरुवार को एक हफ्ते की यात्रा पर दिल्ली पहुंचे। अगस्त 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद काबुल से दिल्ली तक यह पहली मंत्री स्तर की यात्रा है। जयशंकर बोले- अफगानिस्तान के विकास में भारत की रुचि जयशंकर ने कहा कि भारत को अफगानिस्तान के विकास में गहरी रुचि है। उन्होंने आतंकवाद से निपटने के लिए जारी साझा कोशिशों की भी तारीफ की। उन्होंने मुत्तकी से कहा कि हम भारत की सुरक्षा के प्रति आपकी संवेदनशीलता की सराहना करते हैं। पहलगाम आतंकी हमले के दौरान आपने जो समर्थन दिया, वह तारीफ के काबिल था। जयशंकर ने कहा, भारत, अफगानिस्तान की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और स्वतंत्रता के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। इसे और मजबूत करने के लिए ही, मैं आज भारत के तकनीकी मिशन को भारतीय दूतावास के दर्जे तक बढ़ाने की घोषणा कर रहा हूं। बैठक से पहले झंडे का प्रोटोकॉल बना चुनौती दिल्ली में हुई जयशंकर और मुत्तकी की बैठक में किसी भी देश के झंडे का इस्तेमाल नही किया गया। दरअसल, भारत ने अफगानिस्तान में अब तक तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है। इसी वजह से भारत ने तालिबान को अफगान दूतावास में अपना झंडा फहराने की अनुमति नहीं दी है। दूतावास में अभी भी इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान का झंडा फहराया जाता है (यह वह शासन था जिसका नेतृत्व अपदस्थ राष्ट्रपति अशरफ गनी कर रहे थे)। अब तक यही नियम चला आ रहा है। इससे पहले काबुल में भारतीय अधिकारियों और मुत्तकी के बीच हुई बैठकों में तालिबान का झंडा चर्चा में रहा है। जनवरी में दुबई में विदेश सचिव विक्रम मिसरी की मुत्तकी के साथ बैठक के दौरान भारतीय अधिकारियों ने इस मुद्दे पर बात की थी। उस समय, उन्होंने कोई भी झंडा नहीं फहराया था, न ही भारतीय तिरंगा और न ही तालिबान का झंडा। ताजमहल और देवबंद भी जाएंगे मुत्तकी मुत्तकी की भारत यात्रा केवल राजनीतिक मुलाकातों तक सीमित नहीं होगी। वे इस दौरान सांस्कृतिक और धार्मिक स्थलों का भी दौरा करेंगे। 11 अक्टूबर को मुत्तकी सहारनपुर के प्रसिद्ध दारुल उलूम देवबंद मदरसे जाएंगे। यह संस्था पूरी दुनिया के मुस्लिम समाज में एक विचारधारा और आंदोलन का केंद्र मानी जाती है। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में स्थित दारुल उलूम हक्कानिया इसी देवबंद मॉडल पर बना था। इसे 'तालिबान की यूनिवर्सिटी' भी कहा जाता है। चर्चित तालिबानी कमांडर मुल्ला उमर, जलालुद्दीन हक्कानी, और मुल्ला अब्दुल गनी बरादर यहीं से पढे हैं। 12 अक्टूबर को मुत्तकी आगरा में ताजमहल का दौरा करेंगे। इसके बाद वे नई दिल्ली में उद्योग और व्यापार प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक में शामिल होंगे, जिसे एक प्रमुख चैंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा आयोजित किया जा रहा है। राजनीतिक स्तर पर सबसे अहम मुलाकात 10 अक्टूबर को हैदराबाद हाउस में होगी, जहां उनकी बैठक विदेश मंत्री एस. जयशंकर से तय है। यही वह स्थान है जहां भारत विदेशी नेताओं से उच्च-स्तरीय वार्ताएं करता है। मुत्तकी को इस दौरान आधिकारिक विदेश मंत्री के समान प्रोटोकॉल दिया जाएगा। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मुत्तकी की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भी अलग से मुलाकात हो सकती है। इस बैठक में सुरक्षा, आतंकवाद निरोध, मानवीय सहायता, अफगान छात्रों और व्यापारियों के वीजा से जुड़े मुद्दों पर बातचीत होने की संभावना है। इसके अलावा, तालिबान प्रतिनिधिमंडल भारत में अपनी राजनयिक मौजूदगी बढ़ाने के प्रस्ताव को भी चर्चा में रख सकता है। क्या अब तालिबान सरकार को गंभीरता से ले रहा भारत इसका जवाब में इंटरनेशनल मामलों के एक्सपर्ट और स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज JNU में एसोसिएट प्रोफेसर राजन राज कहते हैं कि भारत के साथ अफगानिस्तान की तालिबान सरकार की जो बातचीत शुरू हुई है, वो कई मायनों में अहम है। भले ही भारत ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी है, लेकिन बातचीत और मंत्रियों के दौरे हो रहे हैं। वे कहते हैं, इससे साफ संदेश जाता है कि भारत अब तालिबान सरकार को गंभीरता से ले रहा है और उसे अफगानिस्तान के प्रतिनिधि संस्था के तौर पर स्वीकार कर रहा है। भारत को ये अंदाजा हो गया है कि तालिबान अफगानिस्तान में लंबे वक्त तक रह सकता है इसलिए उनके साथ बातचीत जरूरी है। वहीं प्रोफेसर ओमैर अनस कहते हैं कि इसके पहले की सरकार अफगानिस्तान में लोकप्रिय नहीं थी। उसकी पश्चिमी देशों पर निर्भरता ज्यादा थी। इसी वजह से पड़ोसी देश जैसे पाकिस्तान के पास मौका रहा कि वो अफगानिस्तान के अंदरूनी संघर्ष में अपना फायदा उठाएं। जब से तालिबान की सरकार आ गई, तब से अब एक मजबूत अफगानिस्तान हमारे सामने है। भारत से दोस्ती के पीछे अफगानिस्तान के क्या फायदे प्रोफेसर राजन कहते हैं, ’भारत के जरिए अफगानिस्तान अपने ऊपर लगे कारोबारी और आर्थिक प्रतिबंध कम करा सकता है। यही वजह है कि वो भारत के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा है। हाल में अफगानिस्तान में आए भूकंप में भी भारत ने काफी मदद और राहत सामग्री भेजी थी।’ ’भारत और तालिबान की मुलाकात अफगानिस्तान के लोगों के लिए भी अहम है। रूस, चीन और अमेरिका सभी बड़ी शक्तियां अफगानिस्तान से बात कर रही हैं। ऐसे में भारत को लगता है कि अगर वो पीछे रहा तो साउथ एशिया में भारत का हित प्रभावित होगा।’ वे आगे कहते हैं, ’भारत की बातचीत के लिए कदम उठाने के पीछे एक वजह फोमो (फियर ऑफ मिसिंग आउट) भी हो सकती है। अफगानिस्तान में पहले भी भारत ने इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप करने में काफी मदद की है। तालिबान सरकार आने के बाद दोनों देशों के बीच जो गैप आया था, अब उसे भरने की कोशिश हो रही है। ’भारत ने लंबे वक्त तक इस मुलाकात को टालने की कोशिश की, लेकिन अब ये होना ही था। अगर भारत बात नहीं करता तो वहां के कट्टरपंथी आतंकी गुट भारत विरोधी हो सकते थे, ऐसे में अब तालिबान की जिम्मेदारी होगी कि वो अपनी जमीन पर भारत विरोधी गतिविधि न होने दे।’ ---------------------------------- तालिबान और भारत साथ, पाकिस्तान क्यों घबराया:ट्रम्प की भी चिंता बढ़ी, अफगान मंत्री के दौरे से इंडिया को क्या मिलेगा अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी के भारत दौरे को तुर्किये की यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर ओमैर अनस काफी उम्मीदों भरा बता रहे हैं। तालिबानी विदेश मंत्री आज से 16 अक्टूबर तक भारत दौरे पर हैं। पूरी खबर यहां पढ़ें...
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