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    फेफड़ों की बीमारियों का बड़ा कारण है मोटापा:डॉ. जयपाल बोले- थकान और सांस फूलने की परेशानी होने लगती, स्वस्थ वजन बचाव के लिए जरूरी

    1 month ago

    बदलती जीवनशैली और असंतुलित खान-पान के चलते मोटापा केवल दिल और शुगर की समस्या ही नहीं बढ़ा रहा बल्कि यह फेफड़ों और श्वसन तंत्र के लिए भी गंभीर खतरा बनता जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि मोटापा फेफड़ों की कार्य क्षमता को कम कर देता है, जिससे सांस लेने में दिक्कत, नींद के दौरान रुक-रुक कर सांस आना (स्लीप एपनिया), अस्थमा और सीओपीडी जैसी समस्याएं तेजी से बढ़ने लगती हैं। बॉम्बे हॉस्पिटल, जयपुर के सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. जयपाल सिंह चाहर ने लंग्स डे पर आयोजित एक जागरूकता कार्यक्रम में बताया कि अत्यधिक वजन पेट और छाती पर दबाव डालता है, जिससे फेफड़े पूरी तरह फैल नहीं पाते। परिणामस्वरूप ऑक्सीजन का प्रवाह घट जाता है और मरीज को सामान्य गतिविधियों में भी थकान और सांस फूलने की परेशानी होने लगती है। मोटापे से शरीर में सूजन (इन्फ्लेमेशन) बढ़ती है, जो फेफड़ों के ऊतकों को और कमजोर करती है। मोटापा फेफड़ों की क्षमता को 20-40 प्रतिशत तक कम कर देता मोटापे और श्वसन तंत्र के बीच यह संबंध खतरनाक है क्योंकि मोटापा बढ़ने पर फेफड़ों की बीमारियां न केवल जल्दी होती हैं बल्कि उनका इलाज भी मुश्किल हो जाता है। यही वजह है कि मोटे मरीजों में अस्थमा के दौरे ज्यादा गंभीर और लंबे समय तक बने रहते हैं। बचाव के लिए चिकित्सक नियमित व्यायाम, संतुलित आहार, वजन पर नियंत्रण और समय-समय पर फेफड़ों की जांच कराने पर जोर देते हैं। उनका कहना है कि स्वस्थ वजन बनाए रखना ही फेफड़ों और दिल दोनों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने का सबसे सरल उपाय है। डॉ. जयपाल ने बताया कि मोटापा फेफड़ों की क्षमता को 20-40 प्रतिशत तक कम कर देता है। वयस्कों में अस्थमा के 10-20 प्रतिशत और बच्चों में 23-27 प्रतिशत मामले मोटापे से जुड़े पाए गए हैं। यही नहीं, जिन मरीजों को पहले से अस्थमा या सीओपीडी है, उनमें मोटापा स्थिति को 10-25 प्रतिशत तक और गंभीर कर देता है।
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