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    मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद मरीज की आंख की रोशनी गई:उपभोक्ता आयोग ने माना 'सेवादोष', डॉक्टर और हॉस्पिटल पर लगाया जुर्माना

    1 day ago

    झुंझुनूं में एक हॉस्पिटल ने मरीज को भरोसा दिलाया कि ऑपरेशन के बाद मोतियाबिंद पूरी तरह से ठीक हो जाएगा। लेकिन ऑपरेशन के बाद मरीज को आंख में तेज दर्द, सूजन और दिखाई देने में लगातार परेशानी होने लगी। जब कोई सुधार नहीं हुआ, तो मरीज ने जयपुर के एसएमएस अस्पताल के नेत्र विशेषज्ञों को आंख चेक करवाई। डॉक्टर्स ने बताया कि उसकी आंख में लैंस सही नहीं लगाया गया है। इसके कारण परिवादी की एक आंख की रोशनी चली गई। इसके बाद पीड़ित मरीज ने जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में परिवाद दायर किया। आयोग ने चिकित्सीय लापरवाही को 'सेवादोष' मानते हुए नवलगढ़ के सेठ आनंदराम जयपुरिया नेत्र हॉस्पिटल और चिकित्सक डॉ. ईसरत सदानी पर 6 लाख 50 हजार रुपए का मुआवजा भरने का आदेश दिया है। आयोग ने स्पष्ट टिप्पणी करते हुए कहा- आंखें प्रकृति द्वारा प्रदत्त अनुपम उपहार हैं' और चिकित्सक का यह 'नैतिक और कानूनी दायित्व' है कि वह पूर्ण सावधानी बरते। ऑपरेशन के बाद आंख में होने लगा था दर्द सीकर जिले के लक्ष्मणगढ़ तहसील के निवासी श्रीराम पुत्र नरायणराम ने वर्ष 2012 में अपनी आंख के इलाज के लिए नवलगढ़ स्थित सेठ आनंदराम जयपुरिया नेत्र हॉस्पिटल में ऑपरेशन करवाया था। मरीज को मोतियाबिंद पूर्णतया ठीक करने का विश्वास दिलाया गया था। ऑपरेशन के बाद मरीज को आंख में तेज दर्द, सूजन और दिखाई देने में लगातार परेशानी बनी रही। लगातार इलाज के बावजूद जब कोई सुधार नहीं हुआ, तो मरीज ने कई अन्य नेत्र विशेषज्ञों को दिखाया। जयपुर के एसएमएस अस्पताल के नेत्र विशेषज्ञों ने बताया कि आंख में लैंस सही नहीं लगाया गया है, जिसके चलते परिवादी की एक आंख की रोशनी चली गई। इसके बाद पीड़ित मरीज ने जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में परिवाद दायर किया। आयोग की सख्त टिप्पणी और ऐतिहासिक फैसला जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के अध्यक्ष मनोज कुमार मील एवं सदस्य प्रमेंद्र कुमार सैनी की बैंच ने इस मामले की सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। आयोग के अध्यक्ष मनोज कुमार मील ने फैसले में लिखा है- प्रकृति ने मानव और सभी को 2 आखों का उपहार दिया है। जब एक मानव अपनी पीड़ा लेकर चिकित्सक के पास आता है, तो वह उम्मीदों से भरा रहता है। वह चिकित्सक पर उसी रूप में विश्वास करता है, जिस प्रकार एक सद्भावी व्यक्ति अपने इष्ट देवता के होने का विश्वास करता है। आयोग ने मेडिकल नेग्लीजेंसी के मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुस्थापित विधि की अवधारणा "परिस्थितियां स्वयं बोलती है" का सिद्धांत लागू होने पर जोर दिया। अस्पताल के तर्क खारिज किए अस्पताल ने अपने बचाव में तर्क दिया कि ऑपरेशन करने वाले चिकित्सक को आंखों की शल्य क्रिया का लंबा अनुभव है और मरीज द्वारा आंख मसलने अथवा दवाई समय पर नहीं लेने की वजह से नेत्र ज्योति गई है। आयोग ने सबूतों के आधार पर इस तर्क को सिरे से खारिज कर दिया। आयोग ने पाया कि ऑपरेशन के बाद भी मरीज ने उसी अस्पताल और चिकित्सक के पास जांच करवाई और अपनी तकलीफ बताई, लेकिन उस समय के दस्तावेजों में मरीज द्वारा बरती गई लापरवाही का कोई जिक्र नहीं था, न ही उसे कोई हिदायत दी गई थी। इसके अतिरिक्त, अस्पताल व चिकित्सक द्वारा आवश्यक चिकित्सकीय दस्तावेज व अनुभव के साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए दी गई लंबी समयावधि (3426 दिवस) के बावजूद भी कोई दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए गए। पत्रावली पर मौजूद दस्तावेजों, चिकित्सीय रिकॉर्ड और दोनों पक्षों के कथनों का परीक्षण करते हुए आयोग ने प्रार्थी का ऑपरेशन करने वाले चिकित्सक व अस्पताल का 'सेवादोष' साबित माना। 45 दिनों में मुआवजा और ब्याज देने का आदेश आयोग ने सेठ आनंदराम जयपुरिया नेत्र हॉस्पिटल स्टेशन रोड नवलगढ़ व चिकित्सक डॉ. ईसरत सदानी को 6 लाख 50 हजार रुपए का मुआवजा 45 दिवस के भीतर पीड़िता को अदा करने का आदेश दिया है। इसके साथ ही आदेश में यह भी कहा गया है कि मुआवजा राशि पर 27 जनवरी 2015 से रकम अदायगी तक 6% वार्षिक दर से ब्याज भी परिवादी को देय होगा।
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