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    ट्रायल कोर्ट से सजा-ए-मौत, हाईकोर्ट ने किया बरी:पाली सिरियारी थाने में दर्ज रेप व डबल मर्डर का मामला

    2 weeks ago

    राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर ने पाली जिले में दो मासूम की हत्या और इनमें से एक बच्ची से रेप के मामले में ट्रायल कोर्ट से मौत की सजा पाए अर्जुनसिंह को बरी कर दिया है। जस्टिस विनीत कुमार माथुर और जस्टिस अनुरूप सिंघी की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की पूर्ण श्रृंखला स्थापित करने में विफल रहा। दरअसल, यह मामला 1 मई 2023 का है जब पाली जिले के सिरियारी थाना क्षेत्र के एक गांव के 13 वर्षीय लड़के और 10 वर्षीय लड़की के शव ओरण, में मिले थे। दोनों बच्चे दोपहर में बकरियां चराने गए थे, लेकिन शाम तक घर नहीं लौटे। पिता और चाचा को 3 मई की सुबह करीब 7:30 बजे झाड़ियों में लड़के का शव मिला। इससे करीब 400 मीटर दूर बिना कपड़ों के बच्ची का शव भी मिला। इस मामले में पुलिस ने 9 मई को अर्जुनसिंह को गिरफ्तार किया था। ट्रायल कोर्ट ने दी थी मौत की सजा पाली के स्पेशल जज (पॉक्सो एक्ट) संख्या 3 ने 11 दिसंबर 2023 को इस केस में अर्जुनसिंह को हत्या के आरोप में मौत की सजा और एक लाख रुपये जुर्माना, पॉक्सो एक्ट के तहत आजीवन कारावास और एक लाख रुपये जुर्माना की सजा सुनाई थी। ट्रायल कोर्ट ने मर्डर रेफरेंस (मौत की सजा की पुष्टि (Confirmation) के लिए) हाईकोर्ट को भेजा था। उधर, अर्जुनसिंह ने इस फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी। बचाव पक्ष के तर्क: कोई चश्मदीद नहीं, झूठा फंसाया अर्जुनसिंह के वकील ने दलील दी कि घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं है। परिस्थितिजन्य साक्ष्य अधूरे हैं और पूर्ण श्रृंखला नहीं बनाते। न तो पीड़ित बच्चों के पिता ने और न ही चाचा ने एफआईआर या पुलिस को दिए बयान में आरोपी का नाम लिया। गिरफ्तारी का आधार स्पष्ट नहीं है। जांच अधिकारी प्रवीण नायक यह बताने में विफल रहे कि अर्जुनसिंह संदेह के दायरे में कैसे आया। बरामदगी के दस्तावेज में कोई स्वतंत्र गवाह नहीं था, केवल पुलिस अधिकारियों ने हस्ताक्षर किए। लोहे की कूंट (कुदाल) तेज धार वाला हथियार है, जबकि मौत का कारण सिर पर कुंद वार बताया गया। डीएनए जांच करने वाले विशेषज्ञ को गवाह के रूप में पेश नहीं किया गया, इसलिए डीएनए रिपोर्ट स्वीकार्य नहीं है। एफएसएल रिपोर्ट अनिर्णायक है और अपराध सिद्ध नहीं करती। हाईकोर्ट- परिस्थितिजन्य साक्ष्य में पंचशील सिद्धांत लागू हाईकोर्ट ने कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य के मामले में पंचशील सिद्धांत लागू होते हैं। शरद बिरधीचंद सारदा बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पांच शर्तें निर्धारित की थीं, जिन्हें पूरा करना आवश्यक है। मकसद: पेड़ की डालियां काटने का झगड़ा, साबित नहीं अभियोजन के अनुसार हत्या का मकसद यह था कि लड़के से पेड़ की डालियां काटने को लेकर झगड़ा हुआ। लेकिन मौका नक्शा में कोई कटी हुई डालियां नहीं मिलीं। लड़का 13 साल का था और अर्जुन 22 साल का था। यह संभव नहीं है कि लड़के ने इतना प्रतिरोध किया कि अर्जुन को उसकी जान लेनी पड़ी। अभियोजन ने आगे कहा कि लड़की घटना की चश्मदीद थी, इसलिए सबूत नष्ट करने के लिए रेप और हत्या की गई। यह केवल परिकल्पना है, कोई सबूत नहीं। स्टेट (दिल्ली एडमिन) बनाम गुलजारीलाल और शंकर बनाम महाराष्ट्र राज्य मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मकसद के पूर्ण अभाव से आरोपी के पक्ष में वजन बढ़ता है। हाईकोर्ट ने फैसले में कहा - इस मामले में अभियोजन पक्ष ने घटनाओं की श्रृंखला स्थापित करने में पूर्ण विफलता दिखाई। कोई मकसद स्थापित नहीं हुआ। मेडिकल रिपोर्ट अनिर्णायक हैं। बरामदगी स्वतंत्र गवाहों के बिना है। अभियोजन सभी उचित संदेहों से परे मामला साबित करने में विफल रहा। कोर्ट ने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि जिस मामले में यह कोर्ट सबूतों का कोई निशान खोजने में कठिनाई महसूस कर रहा है, उसमें ट्रायल कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई। ट्रायल कोर्ट के फैसले में "रेयरेस्ट ऑफ रेयर" केस बनाने के लिए कोई टिप्पणी नहीं है। परिणामस्वरूप अर्जुनसिंह की अपील स्वीकार करते हुए 11 दिसंबर 2023 का फैसला रद्द किया गया। अर्जुनसिंह को सभी आरोपों से बरी किया गया। मर्डर रेफरेंस का नकारात्मक उत्तर दिया गया। आरोपी तुरंत रिहा किया जाए, यदि किसी अन्य मामले में वांछित नहीं है।
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